इतिहासिक महत्वपूर्ण घटनायें
गन्ना प्रजनन संस्थान, कोयम्बत्तूर के इतिहास में महत्वपूर्ण घटनायें
1950 से पहले
1912 | यह संस्थान गन्ना अनुसंधान स्टेशन के नाम से कृषि विभाग, मद्रास प्रैजि़डैंसी के अन्तरगत स्थापित हुआ जिसे तब की अंग्रेज़ सरकार अनुदान देती थी डा0 सी.ए. बारबर को स्टेशन के प्रथम प्रधान एवं गन्ने के सरकारी विशेषज्ञ के रुप में नियुक्त किया गया |
1918 | गन्ने की पहली अन्तर-जातीय व्यवसायिक प्रजाति को. 205 लोकार्पित की गई |
1926 | उषणकटिबंधीय क्षेत्र के लिये गन्ना प्रजनन कार्य प्रारम्भ किया गया |
1927 | को. गन्नों का विदेशों में फैलाव - को. 205 प्रजाति क्यूबा और फलोराइडा (यू.एस.ए.) में |
1928 | को. 312 को लोकार्पित किया गया जिसने तीन दशक तक भारत के उपोषणकटिबंधीय क्षेत्र में सबसे मशहूर प्रजाति के रुप में राज्य किया |
1932 | कृषि अनुसंधान की इमपीरियल समिति द्वारा अनुदानित करनाल केन्द्र को स्थापित किया गया। श्री जी.वी. जेम्स इस स्टेशन के प्रथम प्रभारी थे और वह करनाल में गन्ने के फल्फ वाले बीज को अंकुरित करने में सफल हुए। बीज जनित पौध के पहले वर्ग को रोपित किया गया। |
1933 | उषणकटिबंधीय क्षेत्र के पहले चमत्कारी गन्ना प्रजाति को. 419 को लोकार्पित किया गया |
1946 | स्पान्टेनियम यात्राओं की योजना (एस.इ.एस.- SES) को प्रारम्भ किया गया |
1949 | भारत की दूसरे चमत्कारी प्रजाति को. 740 को लोकार्पित किया गया |
1950-2000
1956 | कैनाल पोइंट, यू.एस.ए. में यू.एस. की सहायता से स्थपित संसार के जर्मप्लास्म के मूल संग्रहण को संस्थान में अनुलिपित कर स्थपित किया गया नौवां आइ.एस.एस.सी.टी. सम्मेलन पहली बार भारत में दिल्ली में आयोजित किया गया |
1962 | संस्थान की गोलडन जुबली मनाई गई। कन्नूर अनुसंधान केन्द्र को स्थापित किया गया जहां गन्ने के जर्मप्लास्म संग्रहण को अनुरक्षित किया गया |
1963 | पी.एल. 480 योजना के अन्तरगत पहले इन्डो-अमेरिकन कृन्तक, जिसमें रोगों और प्रतिकूल वातावरण के लिये प्रतिरोधिता निहित थी, के लिये एस. स्पान्टेनियम का प्रयोग किया गया। रेडियो आइसोटोप प्रयोगशाला को स्थापित किया गया |
1966 | भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की गन्ने पर अखिल भारतीय समन्वित परियोजना को प्रारम्भ किया जिसमें इस संस्थान को एक मुख्य केन्द्र के रुप में मान्यता प्रदान की गई |
1969 | भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आई.सी.ए.आर - ICAR. )के हिस्से के रुप में संस्थान को स्वीकार किया गया |
1974 | गन्ने के लिये राष्ट्रीय संकरण बगीचा (एन.एच.जी.- NHG) कोयम्बत्तूर में स्थापित किया गया |
1977 | टिश्यू कल्चर प्रयोगशाला स्थापित की गई प्रजनन, अनुवांशिकी, कोशिकानुवांशिकी और पादप कार्यकि विभागों का पुनर्गठन किया गया |
1983 | पूर्व-क्षेत्रीय प्रजाति परीक्षण को पांच क्षेत्रीय केन्द्रों पर प्रारम्भ किया गया |
1987 | संस्थान की प्लाटिनम जुबली मनाई गई |
1999 | अगली केन्द्र जिसे 1994 में स्थापित किया गया था, उसने एक पूर्ण अनुसंधान केन्द्र के रुप में कार्य करना प्रारम्भ कर दिया |
2000 के बाद
2011 | शत्वर्षीय समारोह का श्रीगणेश, 24 अक्तूबर, 2011 को डा0 एस. आयप्पन, डी.जी. (आई.सी.ए.आर.) और सैकरेट्री (डी.ए.आर.ई.) के द्वारा, संस्थान के 99वें स्थापना दिवस के अवसर पर किया गया |
2012 | शत्वर्षीय समारोह 2012 के अन्तरगत राष्ट्रीय संस्थान-उद्योग कार्यशाला का आयोजन 26-27 जून, 2012 के दौरान किया गया |
2012 | ’गन्ना अनुसंधान में नये प्रतिमान’ विषय पर अन्तर राष्ट्रीय गोष्ठि का आयोजन 15-18 अक्तूबर, 2012 के दौरान शत्वर्षीय समारोह 2012 के अन्तरगत किया गया |
2012 | शत्वर्षीय समारोह 2012 के समापन कार्यक्रम का आयोजन दिसम्बर 18, 2012 को मुख्य संस्थान में किया गया |