हमारे संस्थापक
डा0 सी.ए. बारबर
डा0 सी.ए. बारबर

- वह गन्ने के पहले सरकारी विशेषज्ञ थे
- वह संस्थान में 1912 से 1918 के दौरान पादप और प्रजनन विज्ञानिक रहे
- वह पहले अन्तर-स्पैसिफिक संकर को. 205 के पहचानने में सहायक थे जिसे व्यवसायिक खेती के लिये लोकार्पित किया गया
- वह 1916 में पहले सफल अन्तर-जैनरिक संकर के निर्माता थे जिसे एस. आफिशनेरम कृन्तक ’वेल्लाइ’ और नरेंजा पोरफियोकाना के मध्य मिलन से उत्पन्न किया गया
- उन्होंने गन्ना प्रजनन कार्य को भारत में शुरु किया जिसमें उन्होंने जंगली स्पीसिस (कांस) की को. प्रजातियों को पैतृक के रुप में प्रयोग कर अपने स्टेशन को अन्तरराष्ट्रीय पहचान दिलाई
- उन्होंने भारतीय गन्नों के शरीरिकि और वर्गीकरण के अति महत्वपूर्ण कार्य को किया
- स्पीसिस सैक्रम बारबेरी का नामकरण भी उन्हीं के नाम पर आधारित है
सर टी. एस. वैंकटरमन
सर टी.एस. वैंकटरमन

- वह पहले अन्तर-स्पैसिफिक संकर को. 205 के पहचानने में सहायक थे जिसे व्यवसायिक खेती के लिये लोकार्पित किया गया। इस प्रजाति को उत्तर भारत में अभूतपूर्व सफलता मिली, विशेषकर पंजाब में, जहां वहां की स्थानीय प्रजातियों से इसने 50% अधिक उपज दर्ज की।
- उन्होंने पहली बार एक तीन स्पीसिस के गठजोड़ की शुरुआत की जिसमें आफिशनेरम गन्ना एस. आफिशनेरम, आफिशनेरम एस. बारबेरी और जंगली स्पीसिस एस. स्पानटेनियम थे और इससे को. 213, को. 244, को. 312 और को. 313 प्रजातियां विकसित हो पाई।
- उनके द्वारा विकसित की गई प्रजाति को. 281 को दक्षिणी अफ्रीका में सफलता मिली जिसके कारण उन्हें साऊथ अफ्रीकन शूगरकेन टैक्नालोजिस्ट एस्सोसियेशन का अवैतनिक फैलो चुना गया।
- वह संसार की अदभुत प्रजाति, को. 419, को विकसित करने में सहायक थे जिसने पूरे उषणकटिबंधीय क्षेत्र को 4 दषक तक गन्ने से भरे रखा और यह कुछ अन्य देशों में भी काफी प्रचलित रही।
- उन्होंने अन्तर-जैनरिक संकरण में पथ-प्रदर्शक कार्य किया।
- उन्होंने देश के विभिन्न कृषि-जलवायु वाले क्षेत्रों के लिये उचित प्रजातियों का एक समूह प्रस्तुत किया।
- उन्हें अंग्रेज़ सरकार द्वारा विभिन्न उपाधियों जैसे कि ‘राव साहब’, ‘राव बहादुर’ और ‘सर’ से नवाज़ा गया। भारत सरकार ने भी उन्हें ‘पदम भूषण’ प्रदान किया। इतिहासिक संक्षिप्त विवरण के लिये यहां दबायें जिन्हें करन्ट साईंस वालयूम 106(8): अप्रैल 2014 में छापा गया है।