गन्ना फसल उत्पादन बारे में आम पूछे गये प्रश्न
संवर्धन प्रक्रियाऐं
आम पूछे गये प्रश्न - संवर्धन प्रक्रियाऐं
- गन्ने के रोपण के लिये खेत की कितनी गहराई तक जुताई की जानी चाहिये?
- गन्ने की रोपाई के लिये उपयुक्त पंक्तियों की दूरी क्या है?
- गन्ने के रोपण के लिये बीज की गुणवत्ता कैसी हो?
- गन्ने की व्यवसायिक खेती के लिये एक, दो या तीन कलिकाओं वाले बीज टुकड़ों में से कौन से बेहतर हैं?
- गन्ने में खरपतवार नियन्त्रण के लिये कौन से खरतपवारनाशी उपयुक्त हैं?
और अधिक संवर्धन प्रक्रियाऐं
- गन्ने में रोपण की कौन सी विधि उत्तम है?
- पारम्परिक रोपण विधि: इसमें खाँचे और मेढ़ें 90 सेंटीमीटर की दूरी पर निकाली जाती हैं और सिंचाई खाँचों में की जाती है।
- द्विपंक्ति रोपण विधि: इस विधि में पंक्तियों की जोड़ी की आपस में दूरी 60 सेंटीमीटर और जोड़ी की आपस में दूरी 120 सेंटीमीटर रखी जाती है। यह विधि टपक सिंचाई और अन्तः फसलों को लगाने के लिये उपयुक्त है।
- चोढ़ी पंक्ति रोपण विधि: इस विधि में पंक्तियों की आपस में दूरी 150 सेंटीमीटर रखी जाती है मगर खाँचे इतने चोढ़े होते हैं की इनमें रोपण 30 सेंटीमीटर की दूरी पर दो पंक्तियों में की जाती है। इस विधि में गन्ने की मशीनीकृत खेती की जा सकती है और अन्तः फसलें भी ले सकते हैं।
- खड्डे वाली रोपण विधि: इसमें 90 सेंटीमीटर व्यास के 45 सेंटीमीटर गहरे खड्डे 1.5 मीटर ग 1.5 मीटर की दूरी पर बनाये जाते हैं। हर खड्डे को करीब निकाली गई मिट्टी में आधी को खलिहान खाद के साथ मिलाकर वापिस डाल करीब 17 से 26 बीज टुकड़े एक साईकल के पहिये के अर्धव्यास ताढ़ीयों के समान रोपित किये जाते हैं।(FYM)
- गहरी खाई (trench) में रोपण विधि: यह विधि शुरुआती सूखे और बाद में जलप्लावन वाले हालातों के लिये अति उपयुक्त है। इन खाईयों को 45 सेंटीमीटर गहरा और 60 सेंटीमीटर चोढ़ा बनाया जाता है। खाईयों के बीच की दूरी 180 सेंटीमीटर रखी जाती है। दो कलिकाओं वाले बीज टुकड़ों को हर खाई में 30 सेंटीमीटर की दूरी पर दो पंक्तियों में रोपित किया जाता है।
- गन्ने के गिरने के क्या नुकसान हैं? गन्नों के गिरने को कैसे कम किया जा सकता है?
सिंचाई प्रबंधन
आम पूछे गये प्रश्न - सिंचाई प्रबंधन
- गन्ने की एक अच्छी फसल लेने के लिये कितनी सिंचाईयों की आवश्यक्ता होती है?
- कम से कम पानी के साथ गन्ने की खेती कैसे की जा सकती है?
- टपक सिंचाई प्रणाली में अवरोधों को कैसे रोका जा सकता है?
पोषक तत्व प्रबंधन
आम पूछे गये प्रश्न - पोषक तत्व प्रबंधन
- गन्ने की फसल के लिये पोषक तत्वों की कितनी आवश्यक्ता होती है?
- गन्ने के खेत में कार्बनिक और रसायनिक खादों की कितनी मात्राओं की आवश्यक्ता होती है?
- क्या कोई ऐसी विधि या तकनीक है जो साधारण है और जिसे मृदा परीक्षण के बाद गन्ने की फसल के लिये खादों की आवश्यक मात्राओं के आकलन के लिये (विशेषकर महाराष्ट्र के संदर्भ में) आसानी से प्रयोग किया जा सकता है
- गन्ने में खादों को प्रयोग करने के समय क्या हैं?
और अधिक प्रश्न - पोषक तत्व प्रबंधन...
- एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन से आपका क्या मतलब है?
- गन्ने में एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन की कार्य प्रणालियां क्या हैं?
- लक्षित गन्ना उत्पादन को प्राप्त करने के लिये मृदा परीक्षण के आधार पर पोषक तत्वों की आवश्यक मात्राओं का अनुमान लगाना
- मृदा परीक्षण के आधार पर खादों का प्रयोग करना और इस प्रकार देना ताकि जड़ें इन्हें आसानी से प्राप्त कर सकें, यूरिया का अमोनिया के रूप में वाष्पिकरण, भूक्षरण और पानी के साथ बहाव के कारण होने वाली हानि को न होने दे। इसके लिये उपयुक्त शरीरिक नियन्त्रकों जैसेकि भूमि को समतल बनाना और गुड़ाई कार्यों का प्रयोग किया जाना चाहिये
- नेत्रजन के प्रयोग को इसके फसल द्वारा अवशोष्ण पैट्रन के साथ समकालिक बनाना, नमी उपलब्धत्ता बनाये रखना और निक्षालन व पानी के साथ बहाव के कारण होने वाली हानि को कम से कम करना
- सुखे के हालातों में पोषक तत्वों को पत्तों पर स्परे करना और टपक प्रणाली द्वारा उर्वरकों का प्रयोग
- पोषक तत्वों की पुनःप्राप्ति को बेहतर बनाने के लिये कार्बनिक खादों का प्रयोग, फसलों का आवर्तन, फसल प्रणाली में फलीदार फसलों के प्रयोग से जड़ों के विभिन्न पैट्रनों का उपयोग और नेत्रजन का स्थिरीकरण
सूक्षम पोषक तत्व
आम पूछे गये प्रश्न - सूक्षम पोषक तत्व
- गन्ने के खेती में सूक्ष्म पोषक तत्वों का क्या महत्व है?
- गन्ने में लोहे की कमी के लक्षण क्या हैं?
- गन्ने में लोहे की कमी को कैसे दूर किया जा सकता है?
और अधिक प्रश्न- सूक्षम पोषक तत्व.....
- गन्ने की कुछ प्रजातियां लोहे की कमी के लिये सहनशील हों?
- गन्ने में मैंगनीज़ की कमी के लक्षण क्या हैं और इसे कैसे ठीक किया जा सकता है?
- गन्ने में जि़ंक की कमी के लक्षण क्या हैं और इसे कैसे ठीक किया जा सकता है?
कमी के लक्षण : फीकी और पीली हरि से सफेद, लम्बवत्त धारियां, पत्तियों पर दिखाई देती हैं। इन्टरवीनल कलोरोसिस पत्तों के मध्य और चोटी के हिस्सों में सीमित रहता है और कभी कभार ही पूरी पत्ते की पूरी लम्बाई तक पहुंचता है, जैसेकि लोहे की कमी के हालातों में प्रायः देखा जाता है।
मैंगनीज़ की कमी को दूर करना : Tइसे 0.25-0.50% मैंगनस सल्फेट के घोल को हर सप्ताह तब तक स्परे करें जब तक लक्षण खत्म न हो जायें। मृदा में मैंगनीज़ की कमी को ठीक करने के लिये 2.5 टन कार्बनिक खाद/है0 में 25 किलोग्राम मैंगनस सल्फेट को मिलाकर प्रयोग करना अति उत्तम है।.
कार्बनिक खेती
आम पूछे गये प्रश्न - गन्ने की कार्बनिक खेती
- मृदा में कार्बनिक पदार्थों का क्या महत्व है?
- क्या गन्ने की खेती को केवल कार्बनिक खादों के साथ किया जा सकता है?
- गन्ने की खेती के लिये कौन्न से जैविक खादों की आवश्यक्ता है?
गन्ने की फसल के लिये 10.0 किलोग्राम एज़ोसपिरिल्लम या गलुकोनएसिटोबैक्टर के साथ 10.0 किलोग्राम फासफोबैक्टीरिया प्रति है0 की मात्रा मिलाकर प्रयोग करने की सिफारिश की गई है। यह मात्रा दो बराबर हिस्सों में बांटकर दी जाती है। गन्ने के खेत में जब रसायनिक खादों को 45 और 90 दिनों पर देना होता है तब जैविक खादों, एज़ोसपिरिल्लम या गलुकोनएसिटोबैक्टर के साथ फासफोबैक्टीरिया, की आधी आधी मात्रा 30 और 60 दिनों पर दी जाती है। उन गन्ने के खेतों में, जहां रसानिक खाद तीन हिस्सों में 30, 60 और 90 दिन पर दी जाती है वहां जैविक खाद 45 और 75 दिनों पर दो बराबर हिस्सों में दी जाती है।
जैविक खादों, एज़ोसपिरिल्लम या गलुकोनएसिटोबैक्टर व फासफोबैक्टीरिया की आवश्यक मात्रा को 500 ग्राम खलिहान खाद के साथ अच्छी तरंह से मिलाकर गन्ने के पौधों के उदगम स्थलों के पास डालकर हल्कि मिट्टी चढ़ाकर सिंचाई कर दी जाती है। दूसरा विकल्प है जैविक खादों को पानी में मिलाकर पौधों के उदगम स्थलों के पास गीली मृदा के हालातों में डालना।
और अधिक प्रश्न - कार्बनिक खेती....
- प्रैसमड में पोषक तत्व संघटकों की मात्रा क्या है?
- प्रैसमड और गन्ने के अवशेषों की तीव्र कम्पोस्टिंग के लिये किन सूक्ष्मजीवों का प्रयोग किया जाता है?
- गन्ने के अवशेषों से कम्पोस्ट कैसे तैयार की जाती है?
और अधिक प्रश्न - कार्बनिक खेती....
- प्रैसमड से कम्पोस्ट कैसे तैयार की जा सकती है?
- वर्मीकम्पोस्ट कैसे बनाई जाती है?
मृदाऐं
आम पूछे गये प्रश्न - मृदायें और उनका प्रबंधन
- गन्ने की खेती के लिये आदर्श मृदा किस प्रकार की होती है?
- गन्ने की खेती के लिये मृदा से किस प्रकार की अपेक्षायें होती हैं?
मृदा के भौतिक गुणों पर खेती करने की तकनीक निर्भर करती है। दुम्मटी मृदाओं, जिनकी आकृति स्थिर कणों वाली हो, उनमें गन्ने की खेती के लिये तैयारी अपेक्षाकृत बहुत ही आसान होती है, क्योंकि इनमें खेत की तैयारी में केवल खाँचे और मेढ़ों को आवश्यक दूरी पर बनाने तक ही सीमित रहती है।
चिकनी मिट्टी के कारण सख्त मृदाओं में खेत की तैयारी काफी उच्च स्तर की करनी पड़ती है; इसके लिये खाँचे और मेढ़ों को आवश्यक दूरी पर बनाने से पहले गहरी जुताई या रुखानी से कटाई करनी पड़ती है। गन्ने की जड़ें काफी गहराई तक जाती हैं और 5 मीटर से ऊपर दूरी तक पहुंचती हैं और इस प्रकार की गहरी मृदाओं में उग रही फसल में सूखे को सहने की काफी क्षमता रहती है। मृदा का स्थूल घनत्व 1.4 मिलीग्राम /मीटर3 और छिद्रिल्ता करीब 50% होना चाहिये जिससे अपनी धारण क्षमता के स्तर पर इसके छिद्रों में वायु और जल की मात्रा एक जैसे अनुपात में होगी। अगर मृदा का स्थूल घनत्व 1.5 मिलीग्राम /मीटर3 से अधिक होगा तो यह जड़ों के फैलाव में बाधक होने के कारण पौधों की वृद्धि में कमी का कारण बनता है।
मृदा की ऊपरी स्तह में तीव्र गति से रिसाव और अन्दरूनी जल निकासी क्षमता होनी चाहिये ताकि वर्षा या सिंचाई जल एकदम से अवशोषित हो जाये और कोई अधिक मात्रा भी जल्दी से निकल भी जाये। आदर्श हालातों में भौम जल स्तर 1.5 से 2.0 मीटर से नीचे ही रहना चाहिये। ऊँचा भौम जल स्तर जल निकासी को प्रभावित करेगा जिससे अवायवीय (anaerobic) हालात बन जायेंगे जो जड़ों को बुरी तरंह से प्रभावित करेगा। गन्ने की फसल नमी को पसंद करती है मगर जल के रुकने को सह नहीं सकती। जब मृदा के हालात अनुकूल नहीं होते तब और भी अधिक तकनीकी मृदा प्रबंधन को अपनाने की आवश्यक्ता होती है। अतः गन्ने की फसल दानेदार और चिकनी मिट्टी वाली मृदाओं में उपयुक्त प्रबंधन प्रक्रियाओं को अपनाकर उगाई जा सकती है।
और अधिक प्रश्न...
- लवणता का गन्ने पर क्या प्रभाव पड़ता है?
- लवणताग्रस्त मृदा को कैसे कृषि योग्य बनाया जा सकता है
- लवणता सहनशील कुछ प्रजातियों के नाम बतायें?
लवणता के कारण फुटाव में कमी और देरी होने से वुद्धि में कमी, रिक्त स्थान, पिराई योग्य गन्नों और उत्पादन में कमी देखी जाती है। इससे जड़ों व नये पत्तों के शिखर और पुराने पत्तों के किनारों में जलने के लक्षण दिखाई देते हैं। अगर हालात बहुत ही बदतर हों तो शाखाओं का स्पिंडल जला हुआ सा दिखाई देता है। लवणता के कारण तने के बढ़ने, जड़ों के विकास और ब्याँतों के निकलने में कमी हो जाने से उत्पादन और रस की गुणवत्ता में गिरावट देखी जाती है। लवणताग्रस्त मृदाओं से काटे गये गन्ने मुरझाये और अन्दर से खोखलापन्न लिये होते हैं। आमतौर पर लवणताग्रस्त मृदाओं में फसल का प्रदर्शन खेत में निर्बल दिखाई देता है जिसमें बंजर रिक्त स्थान दिखाई देते हैं। कुछ संवेदनशील प्रजातियों में उत्पादन में 40% तक की गिरावट जबकि सहनशील प्रजातियों में यह गिरावट 20% से कम देखी जाती है। यद्यपि को. 95003, को. 93005, को. 97008, को. 85019, को. 99004 और को. 2001-13 को लवणता वाली मृदाओं में अच्छी प्रकार से उगता देखा गया है।
लवणताग्रस्त मृदाओं से फालतू घुलनशील लवणों का निक्षालन (leaching) कर इन्हें कृषि योग्य बनाया जा सकता है। लवणताग्रस्त मृदाओं को कृषि योग्य बनाने के लिये खेत को समतल कर इसे करीब 1,000 मीटर2 के छोटे छोटे प्लाटों में मेंढ़े बनाकर बांट दिया जाता है। खेत के चारों और 75 सेंटीमीटर गहरी नालियां पानी की निकासी के लिये बनाई जाती हैं। इसके बाद खेत की सिंचाई, प्रचुर मात्रा में, अच्छी ग्रणवत्ता वाले पानी से की जाती है। खेत में पानी को 2 से 3 दिन तक खड़ा रखा जाता है ताकि मृदा में उपस्थित लवण घुल जायें। इसके बाद नालियों में से पानी को निकाल कर घुले हुए लवणों को खेत में से, कम से कम 75 सेंटीमीटर तक की गहराई तक, कम किया जाता है। इस निक्षालन प्रक्रिया को तब तक दोहराया जाता है जब तक की मृदा हानिकारक लवणों से स्वतन्त्र नहीं हो जाती। खेत में कार्बनिक पदार्थों को प्रचुर मात्रा में डालकर और गहरी जुताई करना, मिट्टी की निचली परतों को बारीक करना व पलटने जैसी मशीनीकृत उपचार प्रकियाऐं अपनाकर निक्षालन और जल निकासी को और भी बेहतर बनाया जा सकता है। गन्ने के खेत में से घुलनशील लवण निकालने के लिये हर 6टी से 10वीं पंक्ति को जल निकासी नाली के रूप में प्रयोग किया जाना चाहिये।
और अधिक प्रश्न...
- लवणताग्रस्त मृदाओं में गन्ने की खेती के लिये किन्न प्रबंधन प्रक्रियाओं का प्रयोग किया जाना चाहिये?
एक एकीकृत प्रबंधन प्रणाली, जिनमें निमन्नलिखित उपाय शामिल हैं, को अपनाया जाना चाहिये ताकि लवणताग्रस्त मृदाओं से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सके:-
बीज टुकड़ों की मात्रा : सिफारिश की गई मात्रा से 25% अधिक प्रयोग करने से फुटाव में आने वाली कमी को पूरा कर फसल का अच्छा प्रदर्शन देखने को मिलता है।
खाईयो में रोपण: लवणग्रस्त मृदाओं या जहां लवणीय जल से सिंचाई करनी पड़ती है वहां खाईयों में रोपण प्रणाली को अपना कर 15% बेहतर उत्पादन प्राप्त हुआ।
कार्बनिक खादों का प्रयोग: कार्बनिक खादों यदा प्रैसमड 10-15 टन/है0 , खलिहान खाद 25 टन/है0, मृदा जीव, इत्यादि के प्रयोग से आवश्यक पोषक तत्वों (जि़ंक, लोहा, मैंगनीज, कैलशियम और मैगनीशियम) की उपलब्धता बेहतर हो जाती है। चूनेदार मृदाओं में कार्बनिक खादों से मृदा की पीएच. और विद्युत चालक्ता में कमी आ जाती है जिससे यह गन्ने की खेती के लिये बेहतर मृदाऐं बन जाती हैं।
संशोधक: मृदा की पीएच. में वृद्धि से जिप्सम की आवश्यक्ता बढ़ जाती है मगर अधिकतर मृदाओं के लिये 3-6 टन /है0 जिप्सम काफी रहता है।
अच्छी गुणवत्ता वाले जल से सिंचाई : पहले 150 दिनों की संवेदनशील अवधि में अच्छी गुणवत्ता वाले जल से सिंचाई करना लाभदायक रहता है।.
हरि खाद : लवणताग्रस्त मृदाओं की उत्पादक्ता को बेहतर बनाने के लिये हरि खाद के रूप में प्रयोग होने वाली फसलों को अन्तः फसल के रूप में उगाकर उन्हें उसी स्थान पर मृदा में मिला दें।
पोषक तत्व प्रबंधन : लवणीय हालातों में 25% अधिक नेत्रजन की मात्रा का प्रयोग बेहतर उत्पादन देता है। नेत्रजन और पोटाश को पौधों की जड़ों के पास खड्डों में देने से बेहतर उत्पादन प्राप्त होता है।
फसल चक्र: फसल चक्र में लवणता सहनशील फसलों का अपनाया जाना मृदा को बेहतर बनाने में सहयोग करता है।
सहनशील प्रजातियां : लवणता सहनशील प्रजातियों को उगायें।
और अधिक प्रश्न.....
- क्षारीय या सोडिक मृदाओं के लिये किन्न संशोधकों को प्रयोग किया जा सकता है?
- अम्लीय मृदाओं के लिये किन्न संशोधकों का प्रयोग किया जा सकता है?
- गन्ना उत्पादन के लिये खेत की मृदा संघनन और सख्त पैन से कैसे पार पाया जा सकता है?
- कार्बनिक खादों की अधिक मात्रा डालकर
- गहरी जुताई व कटाई से
- सभी जुताई/गुड़ाई के कार्य उचित नमी पर करने से
घनी बुनावट वाली मृदाओं में मृदा संघनन और सख्त पैन से निमन्नलिखित विधियों से पार पाया जा सकता है:
सूखा प्रबंधन
आम पूछे गये प्रश्न - सूखा प्रबंधन>
- सूखे के प्रभावों को दूसरे तनावों से भिन्न कैसे पहचाना जा सकता है?
- सूखे के गन्ना उत्पादन व शर्करा की मात्रा पर क्या प्रभाव हैं?
- किस प्रवस्था पर सूखे का प्रभाव सबसे घातक होता है?
- खेत के हालातों में सूखे के प्रबंधन के कौन्न से आसान तरीके हैं?
- आजकल कौन्न सी सूखा सहनशील प्रजातियां उपलब्ध हैं?
और अधिक प्रश्न...
- शुरुआती सूखे व देर से आने वाले जलप्लावन के हालातों के लिये कौन्न सी रोपण प्रणाली गन्ना उत्पादन को बेहतर बना सकती है?
- गन्ने में सूखे के प्रभाव को कम करने के लिये किन प्रबंधन प्रक्रियाओं को अपनाया जाना चाहिये?
- रोपण को जल्दी करके सूखे के शुरूआत से पहले ही पौधों को काफी वृद्धि के लिये समय प्रदान कर पड़ने वाले सूखे के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
- गन्ना अवशेषों का मल्च के रूप में प्रयोग मृदा की नमी को बनाये रखने में बहुत ही सक्षम प्रक्रिया है। इसके अलावा मल्च के प्रयोग से तापमान मध्यम दर्जे का रहता है, फुटाव बेहतर होता है, ब्याँतो की मरणशीलता में कमी आती है और खरपतवारों की वृद्धि में भी कमी आती है।
- सूखे को सहने की क्षमता में वृद्धि बीज टुकड़ों को रोपण से पहले 1 घंटे के लिये चूने के संतृप्त घोल में डुबोकर पाई जा सकती है। चूने के संतृप्त घोल को 80 किलोग्राम भट्टी के बुझे चूने को 400 लिटर पानी में घोलकर बनाया जा सकता है। इस उपचार से बेहतर फुटाव के साथ ही पौधों में सूखे को सहने की क्षमता में भी वृद्धि देखी जाती है।
- नदी-मुख भूमि के हालातों में शुरूआती सूखे व बाद में जलप्लावन एक आम समस्या है और गहरी खाईयों में रोपण अति लाभदायक होता है।
- खाँच छोड़कर सिंचाई या हर दूसरी खाँच में सिंचाई करने से, जो खाँच सिंचाई प्रणाली में बदलाव हैं, उपलब्ध जल को प्रभावी ढंग से प्रयोग कर सूखे के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
- यूरिया 2.5 किलोग्राम को 2.5 किलोग्राम पोटाशियम कलोराईड के साथ मिलाकर 100 लिटर पानी में घोल को पत्तों पर हर 15-20 दिन के अन्तराल पर स्परे तब तक करें जबतक की हालात समान्य न हो जायें। इससे अधिक बलशाली शाखाओं को रखने में सहायता मिलती है।
जल प्लावन
आम पूछे गये प्रश्न - जल प्लावन
- जलप्लावन के हालातों में किन प्रबंधन प्रक्रियाओं का प्रयोग किया जाना चाहिये?
- फालतु पानी की निकासी व खेत में से जल निकासी के लिये नालियों को बनायें।
- अधिक नमी को कम करने के लिये जल्द रोपण।
- बीज की अधिक मात्रा का प्रयोग ताकि अधिक गन्ने प्राप्त हो सकें।
- मिट्टी चढ़ायें ताकि जड़ों का बेहतर विकास हो सके।
- जलप्लावन सहनशील प्रजातियां जैसेकि को. 8231, को. 8232, को. 8145, को.एस.आई 86071, को.एस.आई 776, को. 8371, को. 9006, 93ऐ.4, 93ऐ.145 और 93ऐ.21 को उगायें।
पुष्पण नियन्त्रण
आम पूछे गये प्रश्न - खेती किये जा रहे गन्ने में पुष्पण का नियन्त्रण
- पुष्पण के गन्ना उत्पादन व रस की गुणवत्ता पर क्या प्रभाव पड़ते हैं?
- गन्ने में पुष्पण को कैसे रोका जा सकता है?
कटाई और गुणवत्ता
आम पूछे गये प्रश्न - गन्ने की कटाई व उसकी गुणवत्ता
- गन्ने में परिपक्वता से आप का क्या मतलब है?
- गन्ने की परिपक्वता का फैसला कैसे किया जाता है?
छोटे स्तर पर परीक्षण : प्रयोगशाला में रस का विश्लेषण सपिंडल ब्रिक्स के लिये ब्रिक्स हाइड्रोमीटर और शर्करा और शुद्धता के लिये पोलेरिमीटर की मदद से किया जाता है। कम से कम 85% की शुद्धता गन्ने की कटाई के लिये आवशयक है।
गन्ने के शिखर/नीचे वाले हिस्से की ब्रिकस का अनुपात : जैसे जैसे स्टाक परिपक्व होता जाता है तो हम देखते हैं कि सबसे ऊपर वाली सूखी पत्ति वाली पोरी से एक छोड़कर गन्ने को दो हिस्सों में अगर बांटा जाये तो दोनों हिस्सों (जिसे टाप/बाटम अनुपात कहा जाता है) के रस की ब्रिक्स का अनुपात परिपक्वता के साथ इकाई की और अग्रसर होता जाता है।
- क्या हम कोई परिपक्वता लाने वाला रसायन गन्ने में भी अंगूरों की तरंह पुनःप्राप्ति लाने में सक्षम हो सकता है? क्या इस दिशा में भारत या बाहर के देश में कार्य हुआ है?
- ईथेफोन या ईथरल और गलाईफोसेट या पोलेरिस, रसायनिक परिपक्वता लाने वालों, का प्रयोग कर अच्छे परिणाम प्राप्त हुऐ हैं। ईथेरल (200 पीपीएम को 270 और 300 दिनों पर) के स्परे से वानस्पतिक वृद्धि देखी गई और शर्करा की मात्रा में भी थोड़ी सी वृद्धि 0.4 - 0.7% देखी गई। गलाईफोसेट (200 पीपीएम को 270 और 300 दिनों पर) के स्परे से शर्करा में विशेषकर 1.0 - 1.2% तक की वृद्धि देखी गई मगर इसके साथ गन्ना उत्पादन में कुछ गिरावट भी देखी गई।
- ईथरल को बिना किसी हानि के शर्करा में थोड़ी वृद्धि के लिये सफलता पूर्वक प्रयोग किया जा सकता है क्योंकि रसायनिक परिपक्वता लाने वाले प्रजाति और जलवायु विशिष्ट होते हैं।
- अगर गन्ने की फसल को ऋतु की शुरुआत में ही काटा जाना है तो हम गलाईफोसेट का प्रयोग कर सकते हैं।
और अधिक प्रश्न.......
- चीनी मिल में कटाई से पहले परिपक्वता के लिये सर्वेक्षण कैसे किया जाता है?
- कटाई के सम्भावित समय से कम से कम 4-6 सप्ताह पहले परिपक्वता के लिये सर्वेक्षण प्रारम्भ किया जाना चाहिये।
- पौधा व पेड़ी फसलों के लिये अलग अलग सर्वेक्षण करें।
- खेतों को प्रजाति एवं रोपण के महीने के अनुसार वर्गीकृत करें।
- एक मिल के सारे क्षेत्र को करीब 50-60 है0 के आसान क्षेत्रफल के कई वर्गों में बांटा जाना चाहिये।
- हर वर्ग के लिये एक गन्ना सहायक के साथ दो क्षमिकों को नमूने लेने के लिये लगायें।
- हर एक टीम आम तौर पर 20-25 वर्गों का कार्य एक दिन में पूरा कर लेगी जिस हिसाब से हर हफते 120-150 वर्गों का सर्वेक्षण कार्य एक टीम पूरा कर लेगी।
- करीब 40 टीमें प्रत्येक फैक्टरी क्षेत्र 5,000-7,000 है0 को एक सप्ताह में पूरा कर लेंगी।
- प्रत्येक खेत के प्रतिनिधि नमूनों की ब्रिक्स हैंड रिफरैक्ट्रोमीटर और रस निकालने वाले यन्त्र की मदद से निकाल कर दर्ज की जानी चाहिये।
- इस प्रकार दर्ज किये गये डाटा के आधार पर प्रत्येक क्षेत्र में खेतों को ब्रिक्स मान के गिरते स्तर के आधार पर व्यवस्थित किया जाता है।
- इसके बाद ब्रिक्स मान के गिरते स्तर के आधार पर गन्ने की कटाई के आदेश दिये जाने चाहियें। इस विधि से काटने के आदेशों के आधार पर एक जैसे परिपक्वता वाले गन्ने पिराई के लिये मिल पायेंगे जिससे मिल की चीनी पुनःप्राप्ति में 0.2-0.5% की बढ़ोतरी सम्भव हो पायेगी।
और अधिक प्रश्न.......
- कटाई के बाद गन्ने को रस की गुणवत्ता में बिना किसी गिरावट के रखा जा सकता है?
- कौन्न सी प्रजातियां कटाई के बाद होने वाली गिरावट प्रतिरोधि हैं?
- गन्ने में कटाई के बाद आने वाली गिरावट को कैसे कम किया जा सकता है?
- अपरिपक्व या अतिपरिपक्व फसल को न काटा जाये।
- कटाई के बाद होने वाली गिरावट के लिये संवेदनशील प्रजातियों को बिना देर किये पेराई के लिये मिल में ले जायें।
- गर्म मौसम में काटे हुए गन्नों को छाया में रखा जाये।
- काटे गन्नों को गन्ने के अवशेषों से ढकें और उस पर समय समय पर पानी का छिड़काव करते रहें ताकि उनकी नमी बनी रहे। गन्ने के कटे सिरों को किसी न किसी जीवनाशी, जैसेकि पोलीसाईड 2 मिलिलिटर /लिटर की दर से बनाये घोल में डुबोयें या बैक्ट्रिनोल-100 के 100 पीपीएम घोल का स्परे भंडारित किये गये गन्नों पर करें। इस प्रकार रस की गुणवत्ता में होने वाली गिरावट को 120 घंटों तक रोका जा सकता है।
- गन्ने के दोनो कटे सिरों को सक्रो-गार्ड में डुबोने से चीनी पुनःप्राप्ति को 0.9% तक बढ़ाया जा सकता है। गन्ने के प्रथम रस में 70% तक सूक्ष्म जीवों की जनसंख्या में कमी सम्भवता इसका कारण था।
रस की गुणवत्ता
आम पूछे गये प्रश्न - रस की गुणवत्ता
- गन्ने के रस की अतिउत्तम गुणवत्ता का सर्वोतम तरीका क्या है?
- रस में शर्करा की उच्च्तम सान्द्रता पहुंच चुकी हो
- गैर शर्कराओं की मात्रा का स्तर कम हो
- रस की शुद्धता उच्च हो
- गन्ने में रेशों की मात्रा उपयुक्त हो
- रस निकाले जाने वाले गन्नों के साथ अनावश्यक पदार्थों (गन्ने के अवशेष, बांधने की समग्री, मृत व सूखे गन्ने, कीचड़, अपरिपक्व शाखाऐं, इत्यादि) की मात्रा न के बराबर हो
- गन्ने में खोखलापन्न न हो
- गन्ने में रस की मात्रा उच्चतर होनी चाहिये
- वह कौन्न से घटक हैं जो रस की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं?
- मृदा वर्ग और सिंचाई के पानी की गुणवत्ता गन्ने की गुणवत्ता को कैसे प्रभावित करते हैं?
और अधिक प्रश्न.....
- गन्ने के रस में संघटकों की मात्रा किस प्रकार की होती है?
समान्य गन्ने में इसके संघटकों की मात्रा की सीमा इस प्रकार है:-
पानी: 75 - 88%शर्करा: 10 - 21%
रिडयूसिंग शर्कराऐं: 0.3 - 3.0%
शर्कराओं के अलावा दूसरे कार्बनिक पदार्थ: 0.5 - 1.0%
अकार्बनिक संयोजक: 0.2 - 0.6%
नेत्रजन वाले संयोजक: 0.5 - 1.0%
- बोतल बंद गन्ने का रस कैसे तैयार किया जा सकता है?
- उच्चतम गुणवत्ता वाले गन्ने के रस के लिये आप इस प्रकार की प्रजाति का चुनाव करें जिसके रस में शर्करा मात्रा उच्च हो, हल्के रंग का हो और रस में रेशे कम हों और गन्ने को परिपक्वता के शिखर पर काटें। इस कार्य के लिये को.सी. 671, को. 62175, को. 7717, को. 86032, को. 86249 और को. 94012 कुछ उपयुक्त प्रजातियां हैं
- तीन किलोग्राम गन्ने के लिये एक नीम्बू और 2-3 ग्राम अदरक का रस मिलायें
- गन्ने के रस को 60-700सी. पर 15 मिन्ट के लिये गर्म करें
- गन्दगी को मसलिन वाले कपड़े से छानकर निकाल दें
- गन्ने के रस को साफ व सुरक्षित करने के लिये 1 ग्राम सोडियम मैटाबाईसल्फाईट प्रति 8 लिटर रस के डालें
- इस रस को गर्म पानी से जिवाणु रहित की गई बोतलों में भरकर कार्क लगाने वाली मशीन की सहायता से कार्क लगायें
- बोतल बंद रस को 6 से 8 सप्ताह के लिये भंडारित किया जा सकता है
- इस कार्य के लिये जिसमें 500 बोतलें प्रतिदिन संरक्षित किये जाने का लक्ष्य हो उसके लिये करीब 10,000 रुपये की लागत आती है जिसमें बोतलों की कीमत, स्टैनलैस स्टील के बर्तन, बिजली के हीटर, गर्म पानी का जिवाणु रहित करने वाला टैंक और कार्क लगाने वाली मशीन शामिल हैं। गन्ना पिराई का यन्त्र इसमें शामिल नहीं है।
गुड़ की गुणवत्ता
आम पूछे गये प्रश्न - गुड़ व उसकी गुणवत्ता
- गन्ने के गुड़ के संघटकों का ब्योरा दें?
- गुड़ बनाने के लिये रस को साफ करने के लिये कौन्न से निर्मलकारी प्रयोग में लाये जाते हैं??
- शर्करा, रिडयूसिंग शर्कराओं, अकार्बनिक फासफेट, लोहा और कैलशियम और कार्बनिक उच्च प्रोटीन व वसा पदार्थों को छोड़कर सभी दूसरे पदार्थ हटा दे
- अनुचित रंग को न बनने दे व उबालने तथा गाड़ा करने के दौरन शर्करा का व्युत्क्रमण रोके
- बेहतर रवेदार गुड़ बनने में सहायता करे
- अधिक गर्माहट व तले पर जलने से रोके
- मनुष्य के स्वास्थय पर बुरा असर न पड़े और गुड़ का स्वाद भी अच्छा हो
- गुड़ को लम्बे समय के लिये भंडारित किया जा सके
- निर्मलकारी पदार्थ असानी से उपलब्ध हो
- कौन्न से वानस्पतिक मिर्मलकारी गुड़ बनाने के लिये प्रयोग में लाये जाते हैं?
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- कौन्न से रसायनिक निर्मलकारी गुड़ बनाने के लिये प्रयोग में लाये जाते हैं?
सोडियम हाईड्रोसल्फाईट, चूना, सोडियम कार्बोनेट, साजी 50% सोडियम कार्बोनेट, मीठा सोडा, 6.4% सोडियम सल्फेट, 4.5% नमक, सुपर फास्फेट और फटकड़ी कुछ निर्मलकारी गुड़ बनाने के लिये प्रयोग में लाये जाते हैं। इनमें से कुछ रसायनिक निर्मलकारी गुड़ बनाने के दौरान हानिकारक सल्फर डाईआक्साइड गैस उत्पन्न करते हैं और इनका गुड़ के स्वाद व भंडारण पर भी प्रभाव पड़ता है।
- 5. कौन्न सी प्रजातियां गुड़ बनाने के लिये अच्छी हैं?
- आन्ध्र प्रदेश: को. 6907, को.टी. 8201, को. 8013, को. 62175, को. 7219, को. 8014, को.आर. 8001
- बिहार: को.एस. 767, बी.ओ. 91, को. 1148
- गुजरात: को.सी. 671, को. 7527, को. 6217, को. 8014, को. 740
- हरियाणा: को. 7717, को. 1148, को. 1158, को.एस. 767
- कर्नाटक: को. 7704, को. 62175, को. 8014, को. 8011, को.सी. 671, को. 86032
- मध्य प्रदेश: को. 775, को. 7314, को. 6304, को. 62175
- महाराष्ट्र: को. 775, को. 7219, को.सी. 671, को. 740, को. 7257, को. 86032
- उड़ीसा: को. 7704, को. 7219, को. 62175, को. 6304
- पंजाब: को.जे. 64, को. 1148, को.जे. 81
- राजस्थान: 997, को. 419
- तमिल नाडू: को.सी. 671, को. 62175, को. 7704, को. 6304, को. 8021, को. 86032, को.सी. 92061
- उत्तर प्रदेश: को.एस. 687, को.जे. 64, को.1148, को.एस. 767, को.एस. 802, को.एस. 7918, को. 1158, को.एस. 8408, को.एस. 8432, बी.ओ. 91, को.एस. 8315, को.एस. 8016, को.एस. 8118, को.एस. 8119, बी.ओ. 19, को.एस. 837
- पश्चिम बंगाल: को.जे. 64, को. 1148
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- गुड़ भंडारण की विधियां कौन्न सी हैं?
निमन्नलिखित विधियां उपयोग में लाई जा सकती हैं ताकि गुड़ की गुणवत्ता में ज्यादा गिरावट न आये :-
- गुड़ को बड़ी मात्रा में भंडार गृह, जिसमें कैलशियम कलोराईड या चूने जैसे नमी सोखने वाले पदार्थ रखे हों, में भंडारित किया जा सकता है
- गुड़ की तहों के बीच गन्ने के अवशेष, फलाई ऐश, पामीराह के पत्ते, चावल की भूसी, इत्यादि रखें
- विशेषकर मानसून ऋतु के दौरान भंडार गृह में चावल की भूसी का धूआं करें
- कम तापमान पर भंडारण करने से गुड़ की ताज़गी और सुगंध बनी रहती है तथा इसके शर्करा के स्तर में भी गिरावट नहीं होगी
- गुड़ को टाट के बोरे, जिनके अन्दर काली पालीथीन की परत लगी हो, में भंडारित किया जा सकता है
- गर्मीयों में गुड़ की नमी को छाया में सुखाकर 6% से कम लाकर इसे टाट के बोरे, जिनके अन्दर काली पालीथीन की परत लगी हो, में भंडारित करने से इसकी भंडारण की अवधि और उपयोगिती बढ़ जाती है
- आम मिट्टी के बर्तन, जिन्हें बाहर अन्दर से पेंट किया गया हो, लकड़ी के डब्बे, पामिराह के पत्तों से बनी टोकरियों को घर में गुड़ को भंडारित करने के लिये प्रयोग किया जा सकता है
- गन्ने से बने गुड़ की ग्रेडिंग करने के लिये किन्न विशष्ट मानकों का प्रयोग किया जाता है?
क्रम संख्या | गुण | ग्रेड - 1 | ग्रेड - 2 |
---|---|---|---|
1. | शर्करा % (न्यूनतम) | 80 | 70 |
2. | रिडयूसिंग शर्ककरायें % (अधिकतम) | 10 | 20 |
3. | नमी % (अधिकतम)% | 5 | 7 |
4. | पानी में अघुलनशील पदार्थ % (अधिकतम)% | 1.5 | 2.0 |
5. | सल्फेट वाली राख % (अधिकतम) | 3.5 | 5.0 |
6. | सल्फर डाईआक्साईड पीपीएम (अधिकतम) | 50 | 50 |
7. | गन्धक के हल्के अम्ल में अघुलनशील राख % (अधिकतम) | 0.3 | 0.3 |
स्त्रोत: भारतीय मानक (आई.एस. 12923) – 1990
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- गुड़ बनाने की विधि क्या है?
आमतौर पर मार्किट में मिलने वाले गुड़ में हानिकारक रसायनों, जैसेकि सल्फर डाईआक्साईड, को अधिक मात्रा में पाया जाता है। गुड़ बनाने के लिये रसायनों के प्रयोग से स्वाद और भंडारण प्रभावित होते हैं। उच्च गुणवत्ता वाले गुड़ को बनाने के लिये पहले तो गन्ने की खेती को प्राकृतिक तौर पर कार्बनिक पदार्थों के प्रयोग से किया जाना चाहिये और उससे गुड़ बनाते समय कार्बनिक निर्मलकारियों का प्रयोग ही किया जाना चाहिये। देश में और निर्यात के लिये भी कार्बनिक विधि से उगाई गई फसल और गुड़ बनाने की मांग बढ़ती जा रही है। कार्बनिक गुड़ बनाने के लिये गन्ने की खेती उन मृदाओं में की जानी चाहिये जो पिछली फसल के रसायनिक खादों, खरपतवारनाशियों, पैस्टीसाईडों इत्यादि के अवशेषों से मुक्त हो। कार्बनिक खेती के लिये सभी सिफारिश की गई तकनीकों का प्रयोग किया जाये और पोषक तत्वों के लिये केवल कार्बनिक स्त्रोतों का ही प्रयोग किया जाये और खरपतवारनाशियों व पैस्टीसाईडों को बिलकुल भी प्रयोग न किया जाये। रोगों व हानिकारक जीवों के प्रबन्धन के लिये केवल जैव-नियन्त्रकों का ही प्रयोग किया जाये।.
- तरल गुड़ बनाने की विधि क्या है?
गुड़ बनाने की विधि के दौरान ही तरल गुड़ भी बनाया जा सकता है। इसमें पानी, शर्करायें और गैर शर्करायें शामिल हैं। इसमें गलुकोस व फरकटोस बराबर अनुपात में पाये जाते हैं जिनके साथ प्रोटीनों, कार्बनिक अम्लों और खनिजों का पाया जाना शामिल है। रस के निष्कर्षण के बाद पोटाश एलॅम के रवों को इसमें डाला जाता है। इससे रस में से ठोस पदार्थों को नीचे बैठ जाने में सहायता मिलती है। इस प्रकार साफ किये गये रस को कढ़ाहे में उबाला जाता है। करीब 50 ग्राम चूने को मिलाकर पीएच. को 6.0 तक लाया जाता है। जब तापमान 850सी. पहुंचता है तो भिंडी की गोंद को उालने के बाद पहली बार झागवाली मैल को हटाया जाता है। रसायनिक निर्मलकारीयों में फासफोरिक अम्ल और सुपर फासफेट का प्रयोग किया जा सकता है। उबालने को जारी रखा जाता है और दूसरी बार मैली को 980सी. पर हटाया जाता है। इस कार्य को पूरा करने का समय तब आता है जब तापमान 1060सी. पर पहुंच जाता है और इस अवस्था में कढ़ाहे को आग से उतार लिया जाता है और 0.04% साइट्रिक अम्ल मिला दिया जाता है। तरल गुड़ चीनी और गुड़ दोनो से मीठा होता है। पूरी तरंह शांत होने पर तरल गुड़ को साफ व हानिकारक जीवों रहित बोतलों में भरा जाता है। इन्हें 1-1.5 साल तक भंडारित किया जा सकता है। बेहतर भंडारण के लिये इसमें 0.1% साईट्रि़क अम्ल व 0.1% सोडियम मेटाबाईसल्फाईट मिलाना आवश्यक है।
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- मूल्यवर्धित गुड़ क्या होता है?
ठोस गुड़ के बनते समय उसमें पोषक पदार्थों, जैसेकि मुरमरे, चने, तिल तथा विभिन्न प्रकार के नट्स जैसेकि काजू, बदाम, विटामिनों, लोहा, स्वाद वर्धक चाकलेट पाउडर, को मिलाकर इस प्रकार के गुड़ की मांग बढ़ाई जा सकती है। मुरमरे, चने, तिल और मुंगफली को विभिन्न अनुपातों, 1:0.75, 1:1, 1:1.25, 1:1.5 और 1:1.75 में मिलाकर गुड़ पट्टियां बनाई जाती हैं जिससे पोषकता व स्वाद में वृद्धि होती है। गुड़-गेहूं के आटे और गुड़-बेसन निःस्त्रावित स्नैक्स गुड़ को आटे या बेसन के साथ 90:10, 80:20, 70:30, 60:40, 50:50 और 40:60 के अनुपात में मिलाकर बनाये जाते हैं। गुड़ को 10% कोको पाउडर के साथ मिलाकर जो उत्पाद बना वह चाकलेट की जगह पर लोगों को काफी पसंद आया। मूल्यवर्धित गुड़ गरीब व कुपोषित बच्चों के लिये पोषक आहार साबित होगा।