निदेशक की कलम से

आज मैं एक सदी पुराने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद संगठन के गन्ना प्रजनन संस्थान, कोयम्बत्तूर के निदेशक के रुप में गौरवान्वित और सम्मानित महसूस कर रहा हूँ। मैं इस संस्थान में 20 मार्च 1986 को एक विज्ञानिक (पादप प्रजनन) के रुप में सम्मिलित हुआ था और मैं इसी मुख्याल्य में 29 अप्रैल 1990 तक कार्य करता रहा। अब मुझे उस सर्व शक्तिमान प्रभु की असीम कृपा से इस ख्याति प्राप्त संस्थान में निदेशक के रुप में सेवा करने का मौका मिला है। मैं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा निर्दिष्ट उत्तरदायित्व के साथ पूरी तरंह से न्याय करने की भरपूर कोशिश करुंगा।
आज के समय में गन्ना किसानों और चीनी मिलों के मुनाफे में कमी आती जा रही है। चीनी उद्योग वाले गन्ना उत्पादकों को उनके गन्ने का उचित मूल्य देने में अपनी असमर्थता दिखा रहे हैं। इन बुरे वित्तीय हालातों में गन्ने के विकास का कार्य उपोषणकटिबंधीय भारत में बिलकुल रुक सा गया है इसलिये चीनी उद्योग और गन्ना उत्पादकों के विश्वास को निर्मित करना परम आवश्यक है।
आज देश में गन्ने की प्रजातियों के परिदृष्य को सुधारने की आवश्यक्ता है क्योंकि अभी भी पुरानी प्रजातियों (को. 86032 उषणकटिबंधीय भारत में; को.एस. 767 और को.एस.ई 92423 उपोषणकटिबंधीय भारत में) की खेती पूरे भारतवर्ष में की जा रही है। यह प्रजातियां विभिन्न क्षेत्रों में एक या दूसरी समस्या से जूझ रही हैं जिसके कारण किसानों को अर्थशास्त्रीय दृष्टि से लाभ की बजाये नुकसान उठाना पड़ रहा है। कई नई प्रजातियों को देश के विभिन्न जलवायु वाले क्षेत्रों में वयवसायिक खेती के लिये लोकार्पित किया गया है मगर इसके बावजूद भी गन्ने की पुरानी प्रजातियों की जगह लेने में इनकी गति बड़ी धीमी है। इन हालात में नई लोकार्पित की गई प्रजातियों के बीज को सूक्षम-जनन, एस.टी.पी. या पोलीबैग नर्सरी तकनीकों द्वारा तेज़ी से बहुगुणित करने की आवश्यक्ता है ताकि गन्ना उत्पादकों के घाटे को कम किया जा सके।
